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27 अप्रैल {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मधु 'मधुमन'
|अनुवादक=
|संग्रह=पंछी यादों के / मधु 'मधुमन'
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<poem>
घेर लेते हैं कभी जब भी कुहासे मुझको
कोई आवाज़-सी आती है ख़ला से मुझको
वो हर इक गाम पर करता है मेरी रखवाली
उसकी रहमत पर भरोसा है सदा से मुझको
आज फिर मुझ पर ढहे कोई क़यामत शायद
उसने देखा है बड़ी बर्क़-अदा से मुझको
मुझको मालूम है अब वह नहीं आने वाला
ऐ मेरे दोस्त न दे झूठे दिलासे मुझको
मिल गया मुझको जो मिलना था मुहब्बत कर के
अब कोई आस नहीं बाग़-ए-वफ़ा से मुझको
जुर्म बतलाए बिना क्यूँ वह सज़ा देता है
बस यही एक शिकायत है ख़ुदा से मुझको
ज़िंदगी ने वह दिखाए हैं भयानक मंज़र
अब ज़रा डर नहीं लगता है क़ज़ा से मुझको
ये मेरी माँ की दुआओं का कवच है ‘मधुमन’
जो बचा लेता है हर एक बला से मुझको
</poem>