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|संग्रह=उजालों का सफ़र / मधु 'मधुमन'
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<poem>
किसी की ख़ामियों का तज़्किरा नहीं करते
यूँ अपने आप छोटा किया नहीं करते

सफ़र में कितने ही लोगों से हम यूँ मिलते हैं
सभी से ही तो मगर दिल मिला नहीं करते

हमें भी दर्द तो होता है बेरुख़ी से तेरी
ये और बात है हम कुछ गिला नहीं करते

इसी में बेहतरी है साध लीजिए चुप्पी
नदी में रह के मगर से लड़ा नहीं करते

कभी तो मान लिया कीजिए हमारी भी
हर एक बात पर इतना अड़ा नहीं करते

ज़रूर कोई तो होती है ख़ासियत उनमें
यूँ ही तो लोग दिलों में बसा नहीं करते

ये मुश्किलें भी ज़रूरी हैं राह में ‘मधुमन ‘
बग़ैर धूप के तो गुल खिला नहीं करते
</poem>
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