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बचपन में छुट्टी के दिन इस तरह बिताता था
मैं अपने पुरखों के नाम पे पेड़ लगाता था
अपनी बगिया गाँव की सबसे सुंदर बगिया थी
दुपहर में अक्सर मैं वहीं पे खाट बिछाता था
 
भेड़-बकरियाँ नन्हें पौधों को चर लें न कहीं
उनके चारों तरफ़ कंटीले तार बिछाता था
 
घर के चारों तरफ़ हमारे क्यारी होती थी
गमलों में भी तरह- तरह के फूल खिलाता था
 
हमजोली बच्चों की भी इक टोली होती थी
बँसवारी के नीचे मैं चौपाल लगाता था
 
गौरेया दालान में मेरे अंडे दे जाती
उन अंडों को बिल्ली से हर समय बचाता था
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