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डाकुओं से अधिक लीडरों से है डर
वेश बदले हुए इन ठगों से है डर
सीख लें मीर ज़ाफ़र से , जयचंद से
दुश्मनों से अधिक भेदियों से है डर
 
कितनी ज़ालिम है दुनिया समझ लीजिये
पर जनों से अधिक परिजनों से है डर
 
हमको सीताहरण ने बता ही दिया
राक्षसों से अधिक साधुओं से है डर
 
डालते हैं वो दाना बड़े प्यार से
वहशियों से अधिक मनचलों से है डर
 
ये कहा है किसी ने सही दोस्तो
अनपढ़ों से अधिक जाहिलों से है डर
 
डर ख़ुदा से न है औ न ईश्वर से है
मस्जिदों से है डर, मंदिरों से है डर
</poem>
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