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रविवार को 18:01 बजे {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अमर पंकज
|अनुवादक=
|संग्रह=लिक्खा मैंने भोगा सच / अमर पंकज
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<poem>
भुला कर अदावत क़दम-दर-क़दम,
किये जा मुहब्बत क़दम-दर-क़दम।
सँभलकर नहीं मैं रहा हूँ मगर,
सँभाली अमानत क़दम-दर-क़दम।
हुई दोस्ती फिर रक़ीबों से है,
सुनाता हिकायत क़दम-दर-क़दम।
इशारा समझ मौसमे-गुल का भी,
करे दिल बग़ावत क़दम-दर-क़दम।
रिफ़ाक़त ‘अमर’ अजनबी से भी कर,
भले हो ख़यानत क़दम-दर-क़दम।
</poem>