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|रचनाकार=अमर पंकज
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|संग्रह=हादसों का सफ़र ज़िंदगी / अमर पंकज
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<poem>
जीवन चाहे जैसा भी हो जीना तो मज़बूरी है,
जीवन जीने की खातिर कुछ नाटक भी तो ज़रूरी है।
योग तपस्या और इबादत मेरी ग़ज़ल कुछ भी तो नहीं,
खोज मुकम्मल जीवन की ये लेकिन खोज अधूरी है।
सच को सच कहना मुश्किल पर सच बिन जीना भी मुश्किल,
मेरी चुप्पी में सिमटी जीवन की कहानी पूरी है।
हास रुदन का अक्स मिलेगा और मिलेगा जीवन रस,
मेरी ग़ज़लों की मादकता कुछ-कुछ तो अंगूरी है।
मत करना तुम याद कभी भी बीती काली रातों को,
आने वाली हर सुब्ह ‘अमर’ चमकीली सिन्दूरी है।
</poem>