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|रचनाकार=शिव मोहन सिंह
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<poem>
सावन भादो बीत गये पर
घन का साया है।
मौसम के घर हरियाली में
धान बकाया है ॥

थोड़ी-सी है कसर अभी तो,
धामिन लोटेगी ।
पूछ रही है भाभी कैसे
बाली फूटेगी !
ऋतुओं की इस मनमानी में
घाम बकाया है ।
मौसम के घर हरियाली में
धान बकाया है ॥

कर्ज़ उधारी बीज खाद के
नीयत तोलेंगे ।
खून पसीने रात नींद में
बोली बोलेंगे ।
व्यापारी के घर किसान का
मान बकाया है ।
मौसम के घर हरियाली में
धान बकाया है ॥

हरिया गोबर पोत-पोत
खलिहान बनाता है।
सपनों में गीला आटा
हर बार सुखाता है ।
मांड-भात में बच्चों का
अरमान बकाया है ।
मौसम के घर हरियाली में
धान बकाया है ॥
</poem>
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