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|रचनाकार=शिव मोहन सिंह
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<poem>
आओ मिलकर साथ मनाएँ
दीपों का त्यौहार ।
फिर से जगमग-जगमग होगा
हम सब का संसार ।

कोना-कोना साफ़ हुआ घर
कण-कण अब आलोकित होगा।
सुधर सँवर कर मान मनोरथ
रिश्तों में अवलोकित होगा।
रात अमावस के आँगन में
पूनम का उजियार ।
फिर से जगमग-जगमग होगा
हम सब का संसार ।

देहरी-देहरी सजी अल्पना
घर-घर दीप जलाना होगा।
हृदय-हृदय में मधुर प्रेम का
मिलकर भाव जगाना होगा।
एक साथ फिर जल जाएँगे
मन के दीप हज़ार ।
फिर से जगमग-जगमग होगा
हम सब का संसार।

उतर-उतर कर अंतस् में जब
इक-दूजे का मन हरसेगा ।
और कहीं ना कोई जग में
रोटी-पानी को तरसेगा ।
श्रम के आँगन धन बरसेगा
मरुथल में रसधार ।
फिर से जगमग-जगमग होगा
हम सब का संसार ।
</poem>
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