<poem>
याद मुझे है, तितली कैसे खिड़की से टकरा रही थी
कोमल पंखों को बार-बार शीशे पर फ़ड़फ़ड़ा रही थी
काँच था पतला औ’ पारदर्शी,आर-पार सब दिखता था
दूर से देखो या पास से, नहीं, काँच नहीं है, लगता था
बात पुरानी, मई का महीना था, मैं था पाँच बरस का
गाँव का घर था बहुत पुराना, तब जहाँ मैं रह रहा था
बन्दी तितली को हवा में छोड़ा मैंने घर से बाहर लाकर
उड़ गई वो सूनी बगिया में, पंख अपने फड़फड़ाकर
जब मर जाऊँगा, पूछेंगे मुझसे — मैंने कैसा जीवन जिया है ?
नेक काम किए हैं कितने, किस-किसका भला किया है?
तब याद करूँगा दिन मई का वो और अपना वो विचार
नहीं चाहा था मैंने बुरा कुछ भी, तितली को लाकर बाहर
'''मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''