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Kavita Kosh से
कुछ लोग कहते हैं —
औरत सर्दियों की लम्बी रातों में
कुछ लोग कहते हैं —
यह हरे-भरे जंगल खलिहान में नौ चंचल आत्माओं की घण्टियों घंटियों वाले हथौड़े की तरह उदास आवाज़ नाचती है...
कुछ लोग कहते हैं —
औरत पुरुष के सिर पर लदा मेरा वो भारी बोझ पाप हैजिसे मैं गरदन में लटकाए घूमता हूँ...
कुछ लोग कहते हैं —
लेकिन मैं मानता हूँ —
वह न तो यह है, न वह है,
न वह चंचल आत्मा बिस्तर है, न ही बोझहथौड़ान ही पाप है मेरा...
वह तो मेरे हाथ हैंहै, मेरे पैर हैंहै, वह मेरी सन्तान बिटिया है, मेरी माँ है, मेरी बहन है, मेरी आजीवन मित्र जीवन साथी है...
'''रूसी से अनुवाद : [[अनिल जनविजय]]'''