Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र वत्स |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र वत्स
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जाति-धर्म, भाषा-दिशा, प्रांतवाद की मार।
टूटी-फूटी नाव है, कौन लगाये पार।।

रहा सैकड़ों साल तक हिन्दुस्तान गुलाम।
फिर भी खुली न आँख तो समझो काम तमाम।।

लोकतंत्र के नाम पर हम सब हुए अतन्त्र।
यही रहा यदि हाल तो फिर होंगे परतंत्र।।


शठ से होना चाहिए वैसा ही व्यवहार।
वरना अगली आपदा आने को तैयार।।


देश बँटा, भाषा बँटी बँटे वर्ग-समुदाय।
कैसे हों सब एक फिर मिलकर करो उपाय।।

झूठे झगड़े छोड़कर, चलो बढ़ायें ज्ञान।
मुसलमान गीता पढ़ें, हिन्दू पढ़ें कुरान॥

त्याग-अहिंसा से हमें बहुत मिल चुका मान।
राष्ट्रप्रेम के ताप से ढालें नया विहान।।

राम-कृष्ण की भूमि यह यहाँ बुद्ध का ज्ञान।
इसकी रक्षा के लिए करें लक्ष्य संधान।।
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
3,987
edits