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|रचनाकार=भव्य भसीन
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<poem>
सजनी मैं राह तकूँ,
प्रियतम आस करूँ,
पिया देर करी नहीं आए।
कहाँ देर लगी वह न आए।
रैन सारी मैंने जाग के काटी,
आँख जली रो-रो उनको बुलाती।
किधर चलूँ कहाँ खोज करूँ,
पिया देर करी नहीं आए।
कहाँ देर लगी वह न आए।
सजनी...
पिया की छवि मैंने मन में बसा ली,
केश है कारे नज़रिया कारी।
कैसे प्राण रखूँ कैसे धीर धरूँ,
पिया देर करी नहीं आए।
कहाँ देर लगी वह न आए।
सजनी
</poem>