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<poem>
देखो तो कितना तरस गई हूँ मैं,
क्या कभी अपनी गोद में मुझे लिटाओगे।
बहुत तकलीफ़ में गुज़ारी है ये आधी-सी रात,
क्या कुछ देर को मेरा सिर सहलाओगे।
कमबख़्त आँसू रुकते रुकते बह जाते हैं
परेशान हूँ, क्या थोड़ा-सा मेरा दिल बहलाओगे।
कुछ मेरे भी जज़्बात रोते हैं रातों में,
क्या तुम थोड़ा-सा प्यार जताओगे।
सुना है बहुत मीठी है तुम्हारी आवाज़,
बस एक बार क्या मुझे बुलाओगे।
थोड़ा सा, बहुत थोड़ा-सा गर तुम्हें मांग लूँ,
क्या पल भर को मेरे पास तुम आओगे।
गर गुज़री न मुझसे जो बाक़ी की रात,
क्या फ़िर मुझे तुम आ कर ले जाओगे
कुछ मेरे भी जज़्बात रोते हैं रातों में,
क्या तुम थोड़ा-सा प्यार।
</poem>
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