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|रचनाकार=भव्य भसीन
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<poem>
मुझे इंतज़ार है, इंतज़ार है उस घड़ी का,
जब मेरी आँख खुलेगी घर में, मेरे घर में।
तुम्हारी शक्ल मेरी पहली निगाह में उतरेगी,
और मैं जाग जाऊँगी इस बुरे सपने से।
मुस्कुरा कर तुम देखोगे और चूम लोगे मेरे माथे को,
तब मेरी सफ़र की सारी थकान उतर जाएगी।
मेरी पहली साँस तुम्हारी ख़ुशबू से भर जाएगी,
और तुम्हारे छूने से इस दिल का सुकून लौट आएगा।
तुम बाहों में बाहें दिए मेरे संग चलोगे
और मैं मोहब्बत से भर जाऊँगी।
जिस प्यार को समेट कर रखती हूँ,
वो प्यार तुम्हें दे पाऊँगी।
मेरे निकट तुम रहोगे और तुम्हारे हृदय से लग जाऊँगी।
मुझे इंतज़ार है, इंतज़ार है उस घड़ी का,
जब मेरी आँख खुलेगी घर में, मेरे घर में।
</poem>
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