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वे निकले थे —
एक मंगल-यात्रा पर,
निकले थे नवजीवन के प्रारंभ को और सुंदर बनाने,
शांति के कुछ क्षण चुराने,
हिम की गोद में जीवन की सादगी खोजने।

पीठ पर श्रद्धा थी,
मन में प्रार्थना —
जो किसी का अहित न करे।
किन्तु लौटे नहीं —
क्योंकि वे प्रश्नों के नहीं,
हथियारों के उत्तर बन गए।

उन्हें धर्म बताया गया —
उस प्रश्न से नहीं,
जो सत्य खोजता है,
बल्कि उस बंदूक से,
जो पहचान पर गोली चलाती है।
“क्या तुम हिंदू हो?” —
यह प्रश्न नहीं था,
यह मृत्यु का उद्घोष था।

यह वही भूमि थी —
जहाँ नदी नारी है, वृक्ष ऋषि,
जहाँ हर अर्घ्य में देवों का आकाश समाहित है।
पर उसी भूमि पर आज
अधर्म ने तांडव रचा,
और शिव की घाटियाँ
रक्त-रंजित हो गईं।

वे आए थे रंग देखने —
पर लौटे, एक रंग बनकर।
लाल... सिर्फ फूलों में नहीं,
अब मासूम देहों के रक्त में था।
पर्यटन अब नहीं था —
वह तीर्थस्थल,
एक रुद्रभूमि बन चुका था।

यह केवल हमला नहीं —
यह हिंदू अस्मिता पर प्रहार है,
उस सहिष्णुता पर,
जिसे कायरता समझ लिया गया।
किन्तु ये असुर भूल गए —
राम ने भी अधर्म के विनाश के लिए
उठाए थे शस्त्र।
कृष्ण ने रणभूमि को धर्मभूमि बनाकर
दिया था गीता का संदेश।
और शिव, जो ध्यान में रमते हैं —
वो भी तांडव जानते हैं।

हमने सहा है —
क्योंकि हम ऋषियों की संतान हैं।
पर अब मौन हमारी संस्कृति का पर्याय नहीं —
यह अधर्म पर वार का शंखनाद है।

कश्मीर!
तेरी वादियाँ
अब सौंदर्य का गीत नहीं,
अब वे पुकार हैं —
उन निर्दोषों की,
जिन्हें धर्म के नाम पर
बलि चढ़ा दिया गया।

वे पर्यटक नहीं थे —
वे निश्छल भारत की आत्मा थे।
हर गिरा हुआ यात्री
अब एक जाज्वल्यमान ज्वाला है,
जो हमें पुकारती है —
“अब नहीं, और नहीं!”

यह राष्ट्र अब मौन नहीं रहेगा।
हम राम के वंशज हैं,
कृष्ण की रणनीति हमारे रक्त में है,
शिव का तांडव हमारी चेतना में।
और शिवाजी की तलवार —
अब हमारे संकल्प में पुनर्जन्म ले चुकी है।

हम नहीं कहेंगे —
“हम क्षमा कर देंगे।”
अब हम कहेंगे —
“हम रुकेंगे नहीं।”

यह प्रतिशोध नहीं,
यह प्रतिज्ञा है —
कि जब भी कोई पूछे —
“क्या तुम हिंदू हो?”
हम कहेंगे —
“हाँ, हम वही हैं —
जिनके मन्त्रों ने सृष्टि को दिशा दी,
और जब अधर्म बढ़ा,
तो सुदर्शन और धनुष उठा लिया।”

अब हम नहीं जलाएँगे
शांति के दीपक और मोमबत्तियाँ —
अब करेंगे प्रज्वलित
शौर्य का अग्निहोत्र,
जिसमें भस्म होंगी सब आसुरी शक्तियाँ।

वे मारे गए —
पर वे मिटे नहीं।
वे अब प्रतीक हैं —
भारत की सहनशीलता की सीमा-रेखा।
अब उससे पीछे हटना —
राष्ट्रद्रोह है।

हम उठे हैं
और अब रुकेंगे नहीं।
हम हिंदू हैं —
और अब यह केवल परिचय नहीं,
यह हमारी जीवित, जाग्रत,
ओजस्वी प्रतिज्ञा है।
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