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|रचनाकार=चन्द्र गुरुङ
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<poem>
अपने नेता का विरोध सुनना नहीं चाहा
उन्होंने दोनों कान बन्द कर लिए
अपने नेता की ग़लती देखनी नहीं चाही
उन्होंने दोनों आँखें भी ढक लीं
बन्द कान
ढकी आँखें
जब
उसे देश के लिए बुलाया गया
उसने कुछ नहीं सुना
उसने कुछ नहीं देखा
</poem>