Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्र गुरुङ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=चन्द्र गुरुङ
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
इंसान की तीन आवश्यकताएँ -
रोटी
कपडा
मकान

रोटी
अलग स्वाद की है, जो रोटी मैं आजकल खाता हूँ
भूल गया हूँ मैं भूख का प्यारा-सा चेहरा

कपड़ा
पहले से अच्छे–अच्छे कपड़े पहनता हूँ
पर नहीं ढक सका मन का लालच

मकान
रहता हूँ आजकल भव्य और ऊँचे मकान में
जहाँ से छोटा दिखाई पड़ता हैं आदमी।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
17,194
edits