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15 जून {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चन्द्र गुरुङ
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<poem>
परदेस में
हमेशा गगनचुंबी सपने देखने वाली
दो आँखें लाया हूँ
रातदिन काम करते हाथों को लाया हूँ
यहाँ नाप रहे हैं मेरे पैर नये चतार-चढ़ाव
परदेस में
होंठ भी लाया हूँ
जो मुस्कुराता है कभी-कभार
दिलों में नाचती हैं उमंगें
जीवन में खिलते हैं मुस्कुराहटें
समय के हाथों लगी हैं सुखसुविधाएँ
दोस्त
सबकुछ है परदेस में
उमंग
मुस्कुराहटें
हँसी
सुख
बस छूट गया है
सबकुछ हिफ़ाज़तसे संभालने वाला दिल
वहीं स्वदेश में।
</poem>