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6 जुलाई {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कुमार कृष्ण
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|संग्रह=गुल्लक में बाजार के पाँव / कुमार कृष्ण
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<poem>
मैं कुल्लू-
ऊन कातती अंगुलियों की धड़कन
हर शाल में लिपटी मनुष्य की भूख
कभी न बन्द होने वाला विपाशा का क्रन्दन
बिजली महादेव की अबूझ पहेली हूँ
मैं हूँ रघुनाथ की पालकी
भविष्य के उत्तर ढूँढते युवाओं का ढालपुर
मेरे पास भी है एक गांधी नगर
जहाँ लोगों ने कभी नहीं सुनी गांधी की आवाज
मैं शमशी के धागों में उलझी-
अनुपस्थित आवाज़ हूँ
मैं हूँ पट्टूओं की गरमाहट
गणेश गनी की कविताओं की आहट
मैं कुल्लू पहाड़ में छुपी आग हूँ
देखना चाहते हो तो मणिकरण आओ
मैं वहीं खौलता हुआ
गर्म पानी में मिलूंगा
चावल को भात में बदलता
शब्द को गुरुवाणी बनाता
मैं कुल्लू पार्वती की पर्वत-पीड़ा
रोहतांग का पिघलता हुआ दर्द
हुरला के बच्चों की पीठ पर नाचता-
देश का इतिहास हूँ
मैं गणेश-कैलाश के सपनों में उड़ता कुल्लू हूँ
मैं जितना बच्चों के बस्तों में हूँ
उससे कहीं अधिक गनी के किस्सों में हूँ
मैं कुल्लू-
खुमानी की खटास
सेब की मिठास
अनार के पेड़ों की आस
व्यास के किनारों की प्यास हूँ
मैं कुल्लू-
कुल्लुवी टोपी का
मनुष्यों के सिर पर पहना
पहाड़ का विश्वास हूँ
</poem>