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सोमवार को 14:22 बजे {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रसूल हमज़ातफ़
|अनुवादक=मदनलाल मधु
|संग्रह=
}}
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<poem>
चलता राही जब मंज़िल को
संग, भला, वह लेता क्या ?
रोटी लेता, मदिरा लेता ...
इनकी मगर ज़रूरत क्या ?
हम आदर - सत्कार करेंगें।
सिर आँखों पर, आने वाले !
रोटी तुम्हें पहाड़न देगी
और पहाड़ी मदिरा ढाले ।
चलता राही जब मंज़िल को
संग, भला, वह लेता क्या ?
ख़ंजर तेज़ साथ में लेता ...
उसकी मगर ज़रूरत क्या ?
यहाँ पहाड़ों में स्वागत है
किन्तु अगर कोई दुश्मन,
कहीं घात में होगा, उसका
हम छलनी कर देंगे तन ।
चलता राही जब मंज़िल को
संग, भला, वह लेता क्या ?
गीत साथ में अपने लेता ...
उसकी मगर ज़रूरत क्या ?
गीत यहाँ अद्भुत्त से अद्भुत्त
उनका कोई नहीं शुमार,
फिर भी चाहो तो संग ले लो
उसमें नहीं ज़रा भी भार ।
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : मदनलाल मधु'''
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