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'''1.''' उदास खेत सो रहे हैं,गहरी नींद जाग रहा है, बस, मेरा ये बेचारा दिलबन्दरगाह पर डूब रही इस सन्ध्या वेला मेंलाल पाल की अरुण पताका चमक रही है झिलमिल।झिलमिल ।
सपनों की पहरेदार वो रात
जो खिलकर उसकी आभा को खोल रही है ।
२'''2.'''
बालकनी से नीचे झाँक रहा हूँ मैं
उजली उजली रात में सपनों की है हिलोर,
बयार बह रही, चाँदी सी बिखरी चाँदनी
सुदूर अन्तरिक्ष में बसे कुछ लोक जगत भी
झाँक रहे घर के छोटे से आँगन में।में ।
तारामण्डल के दस तारों की हरी रोशनी
प्रकाश भर रही अन्धियारे जीवन के प्रांगण में ।
३'''3.'''
सुनो, देखो , रात बढ़ रही ख़ामोशी से,
दम तोड़ रही इस सन्नाटे में उसकी पदचाप,
मेज़ पर मेरी जलता लैम्प मेरा कुछ यूँ चरमरा रहाझींगुर की तरह कर रहा है हो जैसे एकालाप ।
अलमारी में खड़ी किताबें बुला रही हैं,
उनके पुट्ठों पर झलक रहा है रंग सुनहरा,
परीलोक की यात्रा का झूला झुला रही हैं,
पुल बनकर दूर करें जड़ता का कोहरा ।
'''4.'''
बच्ची अबोध, जिसने मृत माँ के संग रात बिताई,
आँसू बहाए, सिसकी, बिलखी, रोई - चिल्लाई,
धीरे-धीरे बीत गए फिर साल - दर - साल,
उस रात की उसको फिर जीवन में कभी याद न आई ।
आई फिर जीवन में उसके ऐसी एक रात
पाप के अँगारों ने किया उसपर आघात
लाल होंठों पर जगी वासना, हवस ने किया संघात
याद आई तभी उसे जागरण की वह रात ।
'''अँग्रेज़ी मूल जर्मन से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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''' अब यही कविता अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िएइसी कविता का एक अंश'''
Rainer Maria Rilke
Evening