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9 जुलाई {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=एलैन कान
|अनुवादक=देवेश पथ सारिया
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
'''1'''
सिक्कों से बनाते हैं कोई कला
ऊन के गोलों से बुनते हैं बिल्लियाँ
कठोर बिल्लियाँ, पतली बिल्लियाँ
कला के कठोर शब्द
छुअन की असंभव कारीगरी
यह, यह है तुम्हारा गाल
यहाॅं, यहाॅं है तुम्हारी गर्दन ।
'''2'''
यह तोड़-सा देता है माॅंसपेशियों को
और ख़ाली कर डालता है
कनपटियों को और पेट को
और यह हर रोज़ का माजरा है ।
'''3'''
लोग कहते हैं
मैं तुमसे प्यार करती हूॅं
मुझे कोई परवाह नहीं
और मैं कभी थकती भी नहीं।
'''4'''
मैंने सुना है कि प्रेम
लोगों को बना देता है
मुलायम
लेकिन
मैं कभी नहीं रही
इससे अधिक
निर्मम ।
'''मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : देवेश पथ सारिया'''
</poem>