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<poem>
दूर किस तरह रखूँ आत्मा मैं अपनी
ताकि छू न जाए यह तुम्हारी आत्मा से
कितना ऊँचा इसे उठाऊँ, रह सके जो दूर तुमसे
किन्हीं दूसरी चीज़ों के साथ ।
चाहता हूँ रख लूँ छिपाकर, खोई हुई चीज़ों के बीच,
अन्धेरी सुनसान जगह पर
जिसकी खनक तक न पहुँचे
जहाँ तुम्हारी गहराइयों की झनकार हो ।
 
हमें छूकर जाती हुई हर एक चीज़
बाँधती है हमें धनुषाकार वायलिन की तरह
जहाँ दो अलग-अलग तार बजें
और बने संगीत, बस, एक ध्वनि की तरह ।
 
कौन से हैं वाद्ययन्त्र
जिनमें बसे हैं हम-तुम
और कौन संगीतज्ञ है थामे हुए हमें
आह ! सबसे मीठे गीत !
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुमन माला ठाकुर'''
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