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ढोल बजाकर मेघ कर रहे
सावन की अगवानी
झर- झर झरती बूँदें भू पर
रुनझुन- रुनझुन नाचें
पवन झकोरे
दिशा- दिशा में
नेग गंध के बाँटें
राग किसी ने बिरहा छेड़ा
जागी पीर पुरानी।
मृदुल लताएँ पेड़ों से
गलबहियाँ करने भागें
सूखे ठूँठों के भीतर भी
सरस कोंपले झाँकें
इठलाकर चलती हैं नदियाँ
सब पर चढ़ी जवानी।
होरी की चिंता-
कैसे ये बीतेंगे चौमासे
भीगी कथरी, टूटा छप्पर
कब तक होंगे फाके।
सब कुछ बदला; किंतु न बदली
उसकी रामकहानी।
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