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लोकतन्त्र का नया खेल है
आओ खेलें गाली -गाली।
भाषा की मर्यादा तोड़ें,
शब्द -वाण जहरीले छोड़ें,
माँ -बहिनों की पावनता के
चुन-चुनकर गुब्बारे फोड़ें।
उनकी सात पुश्त गरियाएँ
अपनी जय-जयकार कराएँ
चतुर मदारी- सा अभिनय कर
गला फाड़ सबको बतलाएँ,
हम हैं सदाचार के पुतले,
प्रतिपक्षी सब बड़े बवाली।
चलो ज़हर की फसल उगाएँ
जाति- धर्म की कसमें खाएँ,
कल- परसो चुनाव होने है,
कैसे भी सत्ता हथियाएँ ,
जनता को फिर से भरमाएँ,
कठपुतली की तरह नचाएँ ,
नंगों के हमाम में चलकर,
ढोल बजाकर ये चिल्लाएँ-
मेरे कपड़े उजले- उजले
उनकी ही चादर है काली।
खेल पसन्द आए तो भइया,
सभी बजाना मिलकर ताली।
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