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{{KKRachna
|रचनाकार=निहालचंद
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatHaryanaviRachna}}
<poem>
राजमाता मुझे रखले, शरण तेरी मैं आई हूँ ।
जरूरत अन्न वस्त्र की, मैं विपता की सताई हूँ ॥टेक॥
जीव चुगता वहाँ जाकर, जहाँ का आबोदाना हो ।
अचानक मैं तेरे द्वारे, विधाता ने खन्दाई हूँ ।1।
पाप की दृष्टि से मुझको, तकै सो दुख उठावैगा ।
क्योंकि बलवान पतियों की, शुद्ध सच्ची कमाई हूँ ।2।
मिली मुझे ज्ञान की शिक्षा, मेहरबानी ये गुरुओं की ।
अर्थ और धर्म मर्यादा, कर्म करना सिखाई हूँ ।3।
निहालचन्द कर्म कर्ता को, पड़ै फल भोगणा ज़रूरी ।
जन्म देते पिता-माता, पढ़ाई और गुनाई हूँ ।4।
</poem>
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राजमाता मुझे रखले, शरण तेरी मैं आई हूँ ।
जरूरत अन्न वस्त्र की, मैं विपता की सताई हूँ ॥टेक॥
जीव चुगता वहाँ जाकर, जहाँ का आबोदाना हो ।
अचानक मैं तेरे द्वारे, विधाता ने खन्दाई हूँ ।1।
पाप की दृष्टि से मुझको, तकै सो दुख उठावैगा ।
क्योंकि बलवान पतियों की, शुद्ध सच्ची कमाई हूँ ।2।
मिली मुझे ज्ञान की शिक्षा, मेहरबानी ये गुरुओं की ।
अर्थ और धर्म मर्यादा, कर्म करना सिखाई हूँ ।3।
निहालचन्द कर्म कर्ता को, पड़ै फल भोगणा ज़रूरी ।
जन्म देते पिता-माता, पढ़ाई और गुनाई हूँ ।4।
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