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भीम भण्डारी रै / निहालचंद

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भीम भण्डारी रै, दंगल मैं धाया ॥टेक॥
हाथ मिले फेर कौळी पड़गी, पकड़ हुई साँकल-सी भिड़गी,
छाती सेती छाती अड़गी, देखैं नर नारी रै, हुई बादळ छाया ।1।
अपणी-अपणी कर चितराई, दाव-पेंच लावण लगे भाई,
छह घण्टे तक करी घुळाई, थे बलकारी रै, भुजबल अजमाया ।2।
भण्डारी नै देकै हुँकारा, जीवतमल ठाकै चित्त मारा,
अन्त समय रह्या बूझ बिचारा, कैहदे सारी रै, भेद नहीं पाया ।3।
निहालचन्द कहैं भीम कान मैं, ख़ूब जचाले बात ध्यान मैं,
इब खींचूँगा तेरे प्रान मैं, सूँ भीम खिलारी रै, कुन्ती का जाया ।4।
</poem>
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