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इस दासी नै मेरे पास / निहालचंद

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<poem>
इस दासी नै मेरे पास, भेज दिये तड़कै हे, सुण मरज्याणी ॥टेक॥
नृप का ताज तार धर द्यूँगा, थारी काया मैं भुस भर द्यूँगा,
कर द्यूँगा सत्यानाश, खाट मैं पड़कै हे, पीओगे पाणी ।1।
और के सुख हो माँ जाइयाँ का, बता के हरजा असनाइयाँ का,
सै म्हारा भाइयाँ का इकलास, चलैं सैं अकड़कै हे, चाल मस्तानी ।2।
बता तू किस के डर से डरै, बहू से भाई का घर भरै,
मनै मतना करै निराश, बोल बेधड़कै हे, दे बाकबाणी ।3।
दर्शन होज्या अकलबन्द का, कठिन मामला इश्क़ फन्द का,
निहाल कहै सरूपचन्द का दास, बात सुण भड़कै हे, तू बड़ी
गिरकाणी
</poem>
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