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<poem>
कहूँ दास्ताँ तेरे बीर की, सुनिये कहानी ग़ौर सैं॥टेक॥
ऐसी भयंकर बोल थी, जणूँ रीछ बोलै ज़ोर सैं ।
थी पाप की गन्दी नजर, देखै था करड़े त्यौर सैं ।1।
चाहवै कर्या जंगली बिला, धोखा बिचारे मोर सैं ।
उड़ता ख़बर उसको नहीं, पकड्या जा चाँद चकोर सैं ।2।
सच्ची सती का मेळ के, बदमास चमड़ी चोर सैं ।
तकलीफ सै तै घाल दे, बान्दी भतेरी और सैं ।3।
हरियाणा रोहतक जिला, गुरु सरूपचंद के नगर दिसोर सैं ।
तू निहालचन्द मन जकड़ ले, गुरु ज्ञान रेशम डोर सैं ।4।
</poem>
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