दासी रोवती चाल्ली ।2।
करै थी ज्यूँ याद राम नै सीया, आवै था उझल-उझल कै हीया,
पिया तन-मन के,इस गौरी धन के,रंग जोबन के, गुलशन के पाँच माली।3।
निहालचन्द कहै सोच अकल से, आँसू पोंछ रही अंचल से,
भरे जल से नैन, धो लिया दहन, लगी दुख सहन,
पर्दों मैं रहन वाली ।4।
</poem>