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कुलटा / अशोक अंजुम

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|संग्रह=अशोक अंजुम की मुक्तछंद कविताएँ / अशोक अंजुम
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<poem>
मैं बला की खूबसूरत हूँ
मेरा दोष!
मुझे लूटा-खसोटा गया
मेरा दोष!
किसी की दबंगई
मेरी उर्वरा ज़मीन पर
रोप गई अपना बीज
मेरा दोष!
अरे हाँ, सब मेरा ही दोष तो है
स्त्री जो हूँ!
चलो अब आओ
दो गालियाँ
कुलटा!
कुलछनी!
जला दो,
या लटका दो फाँसी पर
भरी पंचायत में सीना फुलाते हुए,
हुक्का गुड़गुड़ाते हुए!

मैं ज़िन्दगी से बहुत प्यार करता हूँ
मैं ज़िन्दगी से बहुत प्यार करता हूँ
क्योंकि मेरे घर में
एक बूढ़ी माँ है
जिसकी आँखों में है मोतियाबिन्द
और जिसे दिखाई नहीं देता
सिवाय मेरे कुछ भी !
</poem>
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