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शनिवार को 19:52 बजे {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अशोक अंजुम
|अनुवादक=
|संग्रह=अशोक अंजुम की मुक्तछंद कविताएँ / अशोक अंजुम
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<poem>
ये जो प्यादे हैं न,
ये हैं राजा की
तीसरी आँख के नियंत्रक!
तीसरी आँख अक्सर
इन्हीं के इशारों पर खुलती,
देखती,
बंद होती है!
वैसे राजा के पास
तीसरी आँख का होना,
सच में उसका राजा होना है।
राजा तीसरी आँख से देख सकता है -
दीवारों के पार,
आसमान से ऊपर,
पाताल से भी नीचे!
तीसरी आँख नहीं
तो कैसा राजा!!
प्रजा राजा से कम
उसकी तीसरी आँख से
अधिक प्रभावित रहती है
क्यों कि ये
कुछ का कुछ बना सकती है,
न होने को भी
होना बनाकर दिखा सकती है!
</poem>