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माननीय / अशोक अंजुम

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रास्ते नज़र आने लगते हैं
साफ़-सफ़्फ़ाफ़।
 
माननीय
आपके आने से
भर जाते हैं
अचानक वे गड्ढे भी
जिन्होंने कमजोर कर दी है
इस शहर के साथ-साथ
सैकड़ों - हज़ारों की रीढ़।
 
माननीय
आपके आने से
अक्सर नखरे दिखाने वाली
बिजली भी
दिखाई देती है
पूरी लय में।
 
माननीय
हमें नहीं चाहिए
आपके अरबों-खरबों वाले आश्वासन,
आपकी केंचुए की चाल से रेंगती योजनाएँ।
आप तो बस इतना निभाएँ
कि झूठा ही सही
जनता से प्यार निभाते रहें,
गाहे-बगाहे ही सही
हमारे शहर में आते रहें!
</poem>
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