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महक / अशोक अंजुम

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|संग्रह=अशोक अंजुम की मुक्तछंद कविताएँ / अशोक अंजुम
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<poem>
अय हय
बड़े महक रहे हो!
कौन-सा इत्र लगाया है?

इत्र!!?
ना ना
मैंने तो
सीने से
मित्र लगाया है!
</poem>
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