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मैं आई गई थी कवि से मिलने उस दिन घर उनके 
दोपहर का समय था, रविवार का था उजाला
काफ़ी बड़ा कमरा था और फैला था सन्नाटा
बातचीत जो की थी उनसे, वो याद सदा रहेगी
था धूसर-झबरा कोहरा और दिन था वो रविवार
मटमैला-सा घर था उनका, बहुत ऊँची सी थी दीवारनिवा नदी किनारे, वहीं था कहीं , जहाँ सागर का द्वार
जनवरी  1911.
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