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|रचनाकार=सुरंगमा यादव
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<poem>
दीप की मैं लौ नहीं हूँ,
जो हवा दम-खम दिखाए
मैं लहर भी नहीं कोई
छू किनारा लौट जाए
और गोताखोर भी मैं वो नहीं जो
हाथ खाली लौट आए

मैं नहीं वो स्वाति- बिन्दु
विषधरों का विष बढ़ाए
काँच का टुकड़ा नहीं मैं
जो शिला से टूट जाए

मैं शिला पर रेख हूँ
आँधियों के बाद खिलती धूप हूँ
वक्त मेरे रथ का पहिया
सारथी भी मैं,
मैं ही सवार हूँ।

</poem>