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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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1
'''कभी अमृत, कभी गरल पिया,'''
इस तरह हमने जीवन जिया।
मीत आए व गए, कब रुके,
दुश्मनों ने सदा साथ दिया।
2
'''वह ज़िन्दगी नहीं, जिसे रोकर बिताएँ'''
वह दर्द क्या, जिसको महफ़िल में सुनाएँ।
हमें पत्थरों से भरा, मिला था रास्ता
मिल बीज कुछ बिखेरें, फूल हम खिलाएँ।
'''( 21-06-2025 )'''
3
'''मिट जाएँ सन्ताप सब, गूँजे-मधुरिम गान'''
बढ़ता जाए आपका, निशदिन सुख- सम्मान।
आँसू सारे पोंछकर, दूँ तुमको मुस्कान ।
शूल हटा पुष्पित करूँ, तेरा पथ हे प्राण !
'''( 05-04-2025 )'''
</poem>