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कभी अमृत, कभी गरल पिया (मुक्तक) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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31 जुलाई
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1
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कभी अमृत, कभी गरल पिया,
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इस तरह हमने जीवन जिया।
मीत आए व गए, कब रुके,
'''( 21-06-2025 )'''
3
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मिट जाएँ सन्ताप सब, गूँजे-मधुरिम गान
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बढ़ता जाए आपका, निशदिन सुख- सम्मान।
आँसू सारे पोंछकर, दूँ तुमको मुस्कान ।
वीरबाला
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