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माँगते वरदान इतना, सब अँधेरा दूर कर दो।
आँगन, गली हर द्वार पर, ज्ञान के तुम दीप धर दो।
जग-मरुथल में हे प्रभुवर! नीर करुणा का बहा दो
सन्ताप जग में हैं बहुत, प्रेम का उजियार भर दो ।
(11-11-23’23)2तुम क्या हो अवसादों के जब घन घिरते, तब तुम चपला बन जाती हो।गहन निराशा जब-जब घेरे,चंदा बन तुम मुस्काती हो।मेरा- तेरा क्या है नाता, कब समझेंगे दुनिया वाले। मैं माटी का दीपक ठहरा नेह भरी तुम तो बाती हो.'''(26/8/2023)'''
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