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|रचनाकार=रसूल हमज़ातफ़
|अनुवादक=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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<poem>
शहर का जशने-सालगिरह है, शराब ला
मनसब ख़िताब रुतबा उनहें क्या नहीं मिला
बस, नुकस है तो इतना कि ममदूह ने कोई
मिसरा कोई किताब के शायां नहीं लिखा

——
शब्दार्थ :
मनसब = पद, ओहदा, रैंक
ख़िताब = उपाधि, पदवी, लकब, सम्बोधन
रुतबा = उच्च प्रतिष्ठा, सम्मान, हैसियत, महत्त्व
ममदूह = जिसकी तारीफ़ की गई हो
शायां = योग्य
</poem>
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