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जब सत्ता ने ख़तरनाक सीख देने वाली किताबों को
सरेआम जलाने का हुक़्म दिया
जगह- जगह किताबों से लदी गाड़ियों को
बैल खींचकर
मरघट की आग की ओर ले जा रहे थे
जब एक उम्रदराज़-उम्दा कवि को पता चला
कि जलायी जलाई जाने वाली किताबों की फ़ेहरिस्त में
उनकी अपनी किताब भूल से रह गई है
तो वह आग बबूला आगबबूला हो गए। गए ।
वह अपनी लिखने की मेज़ की तरफ़ भागे। भागे । गुस्से से तमतमाकर उन्होंने हुक्मरानों हुक़्मरानों को खत ख़त लिखा
“ जला दो मुझे ! ”
वह घसीटा मारकर कलम क़लम से लिख रहे थे,
“जला दो मुझे ! “
मेरे साथ ऐसा बुरा न करो।
मेरी किताब जलाने से न छोड़ो। छोड़ो ।
क्या मैंने अपनी किताब में सचाई बयान नहीं की है?
अब तुम मेरे साथ ऐसा बर्ताव कर रहे हो
गोया मैं झूठा हूँ ।
मैं तुम्हें हुक्म हुक़्म देता हूँ: मुझे जला दो !
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास'''
</poem>
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