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13 अगस्त {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दुन्या मिखाईल
|अनुवादक=देवेश पथ सारिया
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वह स्त्री
जिसके गीतों का
न आग़ाज़ था न अंत
वह जिसकी आवाज़
खो गई सितारों और चंद्रमाओं में
कहाँ है वह?
कहाँ है वह?
*******
जब वे लौटेंगे
उनके पाँवों में नहीं आएंगे
जूते
जो रखे हैं
दरवाज़े के पास।
****
मत पूछो
कि कितने घर बनाए गए
पूछो कि कितने बाशिंदे
बचे रह गए घरों में।
******
सपने दो तरह के होते हैं:
लंबवत और क्षैतिज
मुझे बताओ कि कैसी है
तुम्हारे सपनों की आकृति
और मैं तुम्हें बताऊंगी
कहाँ से आए हो तुम।
******
मैं पैदा हुई
मैं कविताएं लिखती हूॅं
मैं मर जाऊंगी।
*****
कछुए की तरह
पीठ पर उठाए अपना घर
मैं फिरती हूं दरबदर।
*******
दीवार पर लगा शीशा
नहीं दिखाता अब
उन लोगों के चेहरे
जो गुज़रते थे
उसके सामने से।
*******
मृत व्यक्ति
चाॅंद जैसी हरकत करते हैं
धरती को पीछे छोड़
निकल जाते हैं दूर।
*******
ओह, नन्ही चींटियों
कैसे तो तुम आगे बढ़ती जाती हो
पीछे मुड़कर एक बार नहीं देखतीं
काश, पाॅंच ही मिनट को मिले होते मुझे उधार
तुम्हारे जैसे पैर।
*******
हम सारे
पत्तियाॅं हैं पतझड़ की
झड़ जाने को तैयार।
*******
मकड़ी
अपने ही बाहर
बनाती है एक घर
और उसे निर्वासन नहीं कहती।
*******
हम
कुछ इस तरह भूले हैं
मृतकों के चेहरे
मानो सिर्फ़ एक बार हुआ था उनका दीदार
घूमते हुए दरवाज़ों के पार।
*******
कोई कबूतर नहीं हूँ मैं
जिसे मालूम हो
घर की राह।
*******
बड़ी आसानी से
उन्होंने हमारे उपजाऊ साल इकट्ठे किए
एक भूखी भेड़ को खिलाने के लिए।
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बेशक़
तुम्हें नहीं नज़र आएगा
'मुहब्बत' नाम का लफ़्ज़
मैंने पानी पर लिखा था उसे।
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पूनम का चाॅंद
सिफ़र सा दिखता है
जीवन, अंततः एक गोला है
*******
दादा ने घर छोड़ा
हाथों में थामे एक सूटकेस
पिता ने घर छोड़ा, ख़ाली हाथ
पुत्र ने घर छोड़ा, बिना हाथ।
*******
नहीं, मैं तुमसे उकता नहीं गई हूॅं
चाॅंद भी तो हर रोज़ आता है।
*******
उसने अपने दर्द का चित्र उकेरा:
एक रंगीन पत्थर
समुंदर के गर्भ में बैठ गया
मछलियाॅं उसकी बग़ल से गुजर जाती हैं
उसे छू नहीं पातीं।
*******
वह सुरक्षित थी
अपनी माॅं के पेट में।
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लालटेनें रात की सच्ची मुरीद हैं
उनमें सितारों से ज़्यादा सब्र है
वे जलती रहती हैं सुबह तक।
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मृतकों के अंतिम शब्द हैं
सामूहिक क़ब्रों के ऊपर खिले
रंग-बिरंगे फूल।
*******
जो अंक अभी तुम्हें दिखते हैं
अगला पासा फेंकते ही बदल जाएंगे
ज़िंदगी अपने सारे चेहरे
एक बार में नहीं दिखाएगी ।
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वह प्यारा-सा क्षण बीत गया
मैंने एक घंटा बिताया
उस एक क्षण के बारे में सोचते हुए।
*******
हमारे कबीले के कुछ लोग जंग में मरे
कुछ लोग मरे अपनी ही मौत
उनमें से कोई ख़ुशी से नहीं मरा।
*******
चौराहे पर खड़ी पर वह औरत
तांबे की बनी है
और वह बिकाऊ नहीं है।
*******
अपने छोटे-छोटे पैरों पर
तितली लेकर आती है पराग
और जाती है उड़
फूल उसके साथ उड़ नहीं सकता
इसलिए उसकी पंखुड़ियां फड़फड़ाती हैं
जड़ें गीली हो जाती हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : देवेश पथ सारिया
</poem>