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13 अगस्त {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दुन्या मिखाईल
|अनुवादक=देवेश पथ सारिया
|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}
<poem>
मैं एक दुकान में काम करती हूँ
यहाँ बेचे जाते हैं आंसू
अलग-अलग आकृति और आकार की बोतलों में
बड़ी भीड़ रहती है यहाँ
रुमालों के लिए कोई फ़ुर्सत नहीं
सबसे आगे कतार में है वह औरत
जो हर रोज़ आती है
रंगहीन इन बूंदों को ख़रीदने
अपने लिए या किसी और के लिए?
अगला है एक अन्य ग्राहक
एक बार सोचा था उसने
कि वह इस मुल्क को कभी नहीं छोड़ेगा
भले पर्वत अपनी जगह से उखड़ जाएँ
तब भी नहीं
फिर आता है एक बच्चा
अपनी दादी के साथ
वे बाढ़ से बच निकले हैं—
हालांकि वाक़ई में ऐसा नहीं है
कतार में सबसे अंत में खड़ी औरत
अपनी बोतल वापस करना चाहती है
उसका कहना है कि
उसने उसे खोला ही नहीं
उसने सोचा कि
उसे ज़रूरत होगी आंसुओं की
जब उसके दोस्त उसे छोड़ गए थे
लेकिन वह चक्कर लगाती रही
पार्किंग के दो ठिकानों के
सूरज जा चुका है
दुनिया के दूसरे हिस्से में
अब घर जाने का वक़्त है
हम सबके आंसू सूख चुके हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : देवेश पथ सारिया
</poem>