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|रचनाकार=योसा बुसान
|अनुवादक=देवेश पथ सारिया
|संग्रह=
}}
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<poem>
मील का पत्थर बदला है
इस घुमक्कड़ी में तैंतीस बार
मंदिर की ज़मीन पर पाला पड़ा है
*
पीअनी फूल की पंखुड़ियां
हौले से बिखर जाती हैं
दो-तीन के झुंड में इकट्ठी हो जाती हैं
*
वेधती हुई सर्दी
मेरी मृत पत्नी के कंघे पर पड़ती है
हमारे शयनकक्ष में
*
मनुष्यों की इस दुनिया में
लौकी ने बना ही ली
अपनी एक जगह
*
भिक्षु ख़ुशी से
खा रहा है
खमीरीकृत बीन मिसो सूप
*
हालात हैं यूँ
मैं अकेला हूँ
दोस्ती करता हूँ चाँद से
*
कोई कनटोप पहनकर गुज़रा है
अपने ही अँधेरे में
नहीं देख पाया पूर्ण चंद्रमा को
*
शीत ऋतु की हवा
कंकड़ों को उछालती है
मंदिर की घंटी पर
*
सर्दियों का यह तूफान
भागते हुए पानी की आवाज़
चट्टानों को चीरती हुई
*
पहली बरसात गिरती है
और फिर पिघल जाती है
घास पर ओस बनकर
*
पहली बर्फ़बारी
टकराती है सबसे निचले डंठलों से
बाँसों में अटका है चाँद
*
बर्फ़ के नीचे चटकती है एक डाल
मैं जाग जाता हूँ
योशिनो में चेरी के फूलों के स्वप्न से
*
शरद ऋतु की शाम
मैं महसूस करता हूँ
पिछले साल से ज़्यादा अकेला
*
माँ-बाबा
बार-बार करता हूँ उन्हें याद
शरद ऋतु के अंत में
*
वसंती समुद्र
सारा दिन उभरता है, गिरता है
उभरता है, गिरता है
अँग्रेज़ी से अनुवाद : देवेश पथ सारिया
</poem>
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|अनुवादक=देवेश पथ सारिया
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मील का पत्थर बदला है
इस घुमक्कड़ी में तैंतीस बार
मंदिर की ज़मीन पर पाला पड़ा है
*
पीअनी फूल की पंखुड़ियां
हौले से बिखर जाती हैं
दो-तीन के झुंड में इकट्ठी हो जाती हैं
*
वेधती हुई सर्दी
मेरी मृत पत्नी के कंघे पर पड़ती है
हमारे शयनकक्ष में
*
मनुष्यों की इस दुनिया में
लौकी ने बना ही ली
अपनी एक जगह
*
भिक्षु ख़ुशी से
खा रहा है
खमीरीकृत बीन मिसो सूप
*
हालात हैं यूँ
मैं अकेला हूँ
दोस्ती करता हूँ चाँद से
*
कोई कनटोप पहनकर गुज़रा है
अपने ही अँधेरे में
नहीं देख पाया पूर्ण चंद्रमा को
*
शीत ऋतु की हवा
कंकड़ों को उछालती है
मंदिर की घंटी पर
*
सर्दियों का यह तूफान
भागते हुए पानी की आवाज़
चट्टानों को चीरती हुई
*
पहली बरसात गिरती है
और फिर पिघल जाती है
घास पर ओस बनकर
*
पहली बर्फ़बारी
टकराती है सबसे निचले डंठलों से
बाँसों में अटका है चाँद
*
बर्फ़ के नीचे चटकती है एक डाल
मैं जाग जाता हूँ
योशिनो में चेरी के फूलों के स्वप्न से
*
शरद ऋतु की शाम
मैं महसूस करता हूँ
पिछले साल से ज़्यादा अकेला
*
माँ-बाबा
बार-बार करता हूँ उन्हें याद
शरद ऋतु के अंत में
*
वसंती समुद्र
सारा दिन उभरता है, गिरता है
उभरता है, गिरता है
अँग्रेज़ी से अनुवाद : देवेश पथ सारिया
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