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मैदान / शैल चतुर्वेदी

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|संग्रह=चल गई / शैल चतुर्वेदी
}}
 
एक मक्खी<br>
और उसकी बच्ची<br>
एक गंजे का सिर<br>
पार कर रही थीथीं<br>कही कहीं पकडी न जाएँ<br>इसलिए डर रही थी।थीं।<br>
माँ बोली - "सुन बेटी<br>
बदल गया ज़माना <br>
जब ज़िन्दा थे तेरे नाना<br>
तब मै यही यहीं से निकली थी <br>यह चौडा चौडा़ रस्ता था<br>
सँकरी गली थी<br>
दोनो ओर जंगल था बियाबान<br>
अब हो गया है मैदान।<br><br>