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रविवार को 17:18 बजे {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चरण जीत चरण
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|संग्रह=
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<poem>
तेरे चहरे को इस दर्जा पढ़ा है
मेरे चश्मे का नंबर बढ़ गया है
तू अपनी बात कर वर्ना जमाना
मेरे बारे में क्या-क्या सोचता है?
सुनाई कुछ नहीं देता मुसलसल
ये कैसा शोर भीतर मच रहा है?
मेरी इक बात भी मानी न तूने
मुझे दुःख है तो बस इस बात का है
मुझे लगता है शायद ऐशट्रे में
जली सिगरेट कोई रख गया है
</poem>