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इस दर्जा पढ़ा है / चरण जीत चरण

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<poem>
तेरे चहरे को इस दर्जा पढ़ा है
मेरे चश्मे का नंबर बढ़ गया है

तू अपनी बात कर वर्ना जमाना
मेरे बारे में क्या-क्या सोचता है?

सुनाई कुछ नहीं देता मुसलसल
ये कैसा शोर भीतर मच रहा है?

मेरी इक बात भी मानी न तूने
मुझे दुःख है तो बस इस बात का है

मुझे लगता है शायद ऐशट्रे में
जली सिगरेट कोई रख गया है
</poem>
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