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रविवार को 17:19 बजे {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चरण जीत चरण
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|संग्रह=
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<poem>
न फूल बाक़ी है कोई न ख़ार बाक़ी है
वो गाड़ी जा चुकी गर्दो-गुबार बाक़ी है
बस इतना बोल के उसने भी फ़ोन काट दिया
कि तार टूट चुके है सितार बाक़ी है
उधार छोड़ गया है कोई महीनों का
किसी पर प्यार की पहली पगार बाक़ी है
तो उसके बाद बता और क्या हुआ था, अभी ?
गिलास पूरा है आधी सिगार बाक़ी है
हम उस मकाम पर उल्फ़त के आ गए ऐ-दोस्त
न जीत की ही तवक्को न हार बाक़ी है
ये बार-बार क्यूँ स्पार्क हो रहा है वहाँ ?
कहीं जुड़ा हुआ क्या कोई तार बाक़ी है ?
</poem>