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रविवार को 17:20 बजे {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चरण जीत चरण
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|संग्रह=
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<poem>
न जाने कौन से ग़म को बुझा रहे हैं लोग ?
तू सामने है मगर कश लगा रहे हैं लोग
वो प्यार करते थे आख़िर में मिल गए दोनों
ये कोई फ़िल्मी कहानी सुना रहे हैं लोग
जो एक शेर ग़ज़ल में न हो सका शामिल
मना किया था मगर गुनगुना रहे हैं लोग
जिधर से आना मना लिख दिया गया था कभी
उसी तरफ़ से लगातार आ रहे हैं लोग
बना लिए थे कभी गुल चढ़ा लिए थे रँग
उन्ही के वास्ते ख़ुशबू बना रहे हैं लोग
</poem>