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रविवार को 17:21 बजे {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चरण जीत चरण
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|संग्रह=
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<poem>
बिन मुलाकात तुझसे घर जाना
कितना मुश्किल था लौटकर जाना
तुम न समझोगे सिर्फ़ इक जानिब
एक रस्ते पर उम्रभर जाना
वक्ते-रूखसत छुड़ा के हाथों को
तेरा मुड़-मुड़ के देखकर जाना
बात वैसे तो ख़ैर जाने दे
बस हुआ ही नहीं उधर जाना
दूसरा रास्ता नहीं वरना
कौन चाहेगा रोज़ मर जाना?
दिल की मजबूर हो ही जाता है
कस्में ना जाने की मगर जाना
बाद उसके हुआ महीनों तक
इक धुआँ-सा बदन में भर जाना
</poem>