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सोमवार को 17:14 बजे {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=चन्द्र त्रिखा
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|संग्रह=
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<poem>
मन का बोझीलापन धो लें
चलो नई वेबसाइट खोले
राख बनी रिश्तों की जुम्बिश
आओ थोड़ा थोड़ा रो लें
बहुत हुआ, अब चैनल बदलो
तुम भी सो लो हम भी सो लें
मातम, शिकवे, रोना, धोना
आओ अब कुछ बेहतर बोलें
सूरज ख़ुद चल कर आया है
चलो उठो कुछ रोशन हो लें
बारिश, सपने, खुली हवाएँ
ये ख़ुशबू सांसों में घोलें
</poem>